समस्याएँ अनेक किंतु समाधान सिर्फ एक – गौसेवा

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आज विशेष कर भारतवर्ष के सामने बहुत सी समस्या मंडरा रही है । उनमे से कुछ इस तरह है ।
हमारी आज की समस्याएँ
१. देश का हर व्यक्ति निरोगी एवं आनंदमय जीवन केसे जिए
२. देश से लूट तंत्र को कैसे भगाया जाये
३. देश के हर ग्रामीण भाई को रोजगार कैसे मिलेगा
४. देश के हर गरीब.धनी बीमार की बीमारी दूर कैसे होगी
५. देश के हर ग्रामीण परिवार की गरीबी दूर कैसे होगी
६. देश का हर नागरिक बलवान, बुध्दिमान, प्राणवान, प्रतिभावान कैसे बनेगा
७. देश की धरती जो रासायनिक खाद के प्रयोग से बंजर बनती जा रही हैए उसे कैसे उर्वर बनाया जाए
८. मानव जाति पर लगा सबसे बडा कलंक गोवध कैसे बंद होगा
९. अपने को और अपने पूर्वजों को मोक्ष.स्वर्ग के अधिकार कैसे बनाया जाए, आने वाली पीढियों के कल्याण के लिए हम क्या करें
१०. पेडों की रक्षा करके पर्यावरण को संतुलित कैसे बनाया जाए
११. प्राकृतिक प्रकोपों यथा भूकंप, तूफान, सूखा, बाढ आदि से विश्व को कैसे बचाया जाए

ऊपर दिए समस्याओं का समाधान करने मे मानव की सामर्थ्य जवाब दे गया है । मानव जितना सुलझाने का प्रयत्न करता है, समस्याएँ दिन पर दिन उतनी ही जटिल से जटिलतर होती जा रही है। इन सभी समस्याओं का समाधान एकमात्र गोमाता ही कर सकती है ।
गो-संवर्धन आज देश की धार्मिक, आध्यात्मिक, राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, प्राकृतिक, नैतिक, व्यावहारिक अनिवार्य आवश्यकता है। आज का सबसे बडा युग धर्म यही है कि इस गोविज्ञान का प्रचार-प्रसार किया जाए, आज सबसे बडा पुण्य-परमार्थ यही है । गऊ माँ की सेवा यही धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्राप्त करने का सर्वसुलभ, सरल और वैज्ञानिक सर्वश्रेष्ठ साधन है । वेद, शास्त्र, पुराण, महाभारत, गीता इत्यादी आर्ष ग्रंथों के अध्ययन, चितन, मनन से यह सिध्द हो गया है कि (१) गोमाता हमारी सर्वोपरि श्रध्दा का केंन्द्र है । (२) भारतीय संस्कृति की आधारशिला है । (३) वस्तुत: गोमाता सर्व देवमयी है ।
गाय घास, भूसा, छिलका, खली, चूनी, चोकर आदि ऐसी सामान्य वस्तुएँ ग्रहण करती है, चावल, गेहूँ इन्सान खाता है, परंतु गाय उसका भूसा खाती है। इन्सान तेल सेवन करता है, गाय उसकी खली खाती है । मनुष्य दाल खाता है, गाय उसका छिलका और चूरी खाती है । जो मनुष्य के ग्रहण करने योग्य नही है और कम मूल्यवान होती हैं, कितु बदले में अमृत जैसा दुध, बैल, अत्यंत उपयोगी और औषधिरुप गोमय तथा गोमूत्र देती है । इस प्रकार गाय समाज से कम से कम लेकर अधिकतम लाभ पहुँचाती है । अत: यह प्रत्यक्ष ‘वेस्ट खाकर बेस्ट देनेवाली’ है ।
भारत की सबसे बडी समस्याएँ गरीबी, बेरोजगारी और बीमारी है, जो दिन पर दिन बढती जा रही है । कोई सरकार, राजनीतिक दल, धार्मिक संस्था, सामाजिक संस्था नेता या व्यक्ती इन समस्याओं को दूर करने में समर्थ नही है । आजादी के बाद 70 वर्षो मे यह सिध्द हो चुका है ।
एक-दो गाय एक परिवार की परिवरिश कर सकती हैं । एक गाय के गोबर, गोमूत्र एवं गोदुग्ध का समुचित उपयोग करने पर इतनी आय हो सकती हैं कि एक परिवार की परिवरिश सकुशल से हो सके।
पंचगव्य से सभी असाध्य रोगों का सफल, सरल और अन्य थेरेपी से सस्ता इलाज होता है, देश के हर राज्य में पंचगव्य चिकित्सक गंभीर और असामान्य रोगों पर सफल इलाज कर रहे है, और अर्थ के साथ साथ समाज को निरोगी कर गऊमाँ की सेवा में लगे है | अलग अलग विधि से खाद बनाने पर गोबर की उपयोगिता १२० गुना बढ जाती है । गोबर-गोमूत्र आधारित कृषि व्दारा ही रसायनिक खाद का प्रयोग बंदकर धरती माता को बंजर होने से बचाया जा सकता है । और निरोगी देशी बीज आधारित धान से ही देश के युवाओं को चेतना देने का काम हो सकेगा| भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद व्दारा किए गए परीक्षणों से ज्ञात हुआ है की रासायनिक खाद के प्रयोग करने से भूमि की उर्वरा शक्ति २०-२५ वर्षा में प्राय: समाप्त हो जाती है । भारत सरकार के कृषि अनुसंधान परिषद के सेवा निवृत महानिर्देशक ने चेतावणी दी है कि यदि रासायनिक खाद पर आधारित कृषि पध्दति ही चलती रही, तो कुछ वर्षो में ही पंजाब का क्षेत्र मरुस्थल हो जाएगा ।
जब तक समस्त भारत देश में जन-जन के मानस में गोपालन-गोभक्ति पूर्ण रुप से नही जाग्रत होगी, तब तक इस राष्ट्र का कल्याण सर्वतोपरी नही हो सकता । जब तक गोवध बंध न होगा, देश कभी समृध्द नही हो सकता, चाहे सरकार लाखो योजनाएँ बनती रहें, या विदेशी पूंजी को ले कर आये ।
गोबर के बदले कोयला या लकडी जलाना पडे तो क्रमश: साढे तीन करोड टन कोयला अथवा छ: करोड अस्सी लाख टन लकडी की आवश्यकता होगी, जो कोई अरब रुपये मूल्य की होगी । पर्यावरण की चिंता करने वाले लोगों को यह भी विचार करना चाहिए कि साढे तीन करोड टन कोयला फूँकने से पर्यावरण पर कैसा प्रभाव पडेगा । छ: करोड अस्सी लाख टन लकडी के लिए पेडो को काटे जाने से हमारे पर्यावरण की रक्षा किस प्रकार हो सकती है ।
यदि हम गोबर एवं गोमूत्र की उपयोगिता जान जाएँ, उससे श्रेष्ठ ऐसी पंचगव्य की औषधि अगर बनाये और उसका श्रेष्ठतम उपयोग करने लगे, तो देश से गरीबी, बेरोजगारी एवं बीमारी सभी दूर हो जाएगी और किसी भी स्थिति में गाय आर्थिक दृष्टी से भी आजीवन उपयोगी रहेगी । गाय दूध न दे तो भी उपयोगी है ।
एक दूध न देने वाली गाय या बैल के गोमूत्र की दवा बनाई जाए, तो हजारों रुपए प्रति माह का लाभ होता है । गोबर का भस्म बनाया जाये तो दवाई के रूप में बहोत आर्थिक मूल्य भी देती है | खाद बनाया जाए, तो जितना चारा खाती है, उससे पाँच गुना मूल्य का खाद बनाने लायक गोबर देती है ।यानी गोवंश कभी अलाभकारी नही होता । हम लोंगों की अज्ञानता का दण्ड गोवंश को प्राण दण्ड के रुप में मिल रहा है ।
आज देश दु:खी है, प्रजा दु:खी है तथा संत महात्मा सहित सारा चराचर जगत दु:खी है । इसका एकमात्र कारण है गोमाता का दु:खी होना ।गोपालन, गोसेवा, गोदान हमारी संस्कृति की महान परंपरा रही है । गोसेवा सुख और समृध्दि का मार्ग प्रशस्त करती है।

गव्यर्षी श्री नितेश ओझा , सांगली

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