शिक्षा में गौमाता जी की उपयोगिता

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बालक के पांच वर्ष पूरे होते ही की मां बाप को बच्चे को लेकर चिन्ता हो जाती है कि बच्चा पढ लिख कर आगे कैसे बढे। बच्चे को भी चिन्ता रहती है कि अधिक अंकों से उत्तीर्ण होकर जीवन को आगे कैसे बढाएं। इस चिन्ता से बाप.बेटा दोनों को चश्मा लग जाता है। आप चाहो कि आपका बच्चा अच्छी पढ़ाई करके अच्छा पद प्राप्त करे। उसे उच्च पद पाकर भी मद नहीं आवे और अच्छा नाम कमावे। नाम के साथ.साथ जीवन चलाने के लिए दाम भी कमावे। तो आपको शुरूआत से ही बच्चों को गोमाताजी की शरण में ले जाना पड़ेगा। आपके शिक्षित मन में हलचल हो रही होगी कि भला गोमाताजी और शिक्षा का आपस में क्या सम्बन्ध हो सकता है। तो आप अच्छी तरह से दिमाग में यह बात बैठा लेंए कि गोमाता जी और बच्चों की पढ़ाई में बहुत गहरा सम्बन्ध है।
अच्छी तथा उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए बालक में यूं तो कई गुण होने चाहिए लेकिन दो बातें बहुत ही आवश्यक है। पहली बात पढ़ने वाले बालक के शरीर में आलस्य बिल्कुल भी नही होना चाहिए। आलसी बालक अच्छी तरह से पढ़ाई नहीं कर सकता है।

‘‘आलस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम्।
अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतो सुखम्।।’’

यानि आलसी बालक पढ़ नहीं सकता। अब यह आलस्य आखिर आता कहाँ से है। आयुर्वेद, आधुनिक विज्ञान और धर्मशास्त्र इन सभी का मत है कि तन में स्फूर्ति या आलस्य वृद्धि मनुष्य के भोजन की मात्रा और प्रकार पर निर्भर करती है। अल्पमात्रा में किया हुआ सात्विक भोजन शरीर को ऊर्जा देकर आलस्य मिटाता है और अति मात्रा में और तमस पदार्थों से युक्त किया हुआ भोजन तमस और आलस्य जैसे आसुरी गुण को बढ़ाता है। गीताजी में स्वयं प्रभु ने देवता और असुरों के गुणों की भिन्नता बताते हुए सात्विक और तामसी भोजन का भेद बताया है और कहते भी है.

‘‘जैसा खाओ अन्नए वैसा बने तन और मन’’

बच्चों में क्या, आजकल तो बड़ों में भी आलस्य बढ़ा है। पहले लगभग प्रत्येक घर में गोमाताजी होते ही थे। सब लोग दूध, दही, घी गोमाताजी का ही उपयोग में लेते थे। उस समय आलस्य नहीं के बराबर था। लोग सुबह जल्दी उठकरए नहा धोकर इष्ट स्मरण करके दही रोटी का नाश्ता करके काम काज में लग जाते थे। पूरे दिन काम.काज में लगे रहते थे। आलस्य बिल्कुल नही आता था। आज गोमाताजी का दूध मिलता ही कम है। ज्यादातर लोग भैंस का दूध ही पीते है। दही और घी भी भैंस का उपयोग में लेते है। इस कारण देरी से उठते हैं। नहाए बगैर ही नाश्ता करके इधर.उधर बैठे रहते हैं फिर घण्टा दो घण्टा थोड़ा बहुत काम किया ना किया और भोजन करके आराम करेगें। इतने में ही हालत ऐसी हो जाती है कि जैसे कोई एवरेस्ट की चोटी फतह करके आए हो। अब आपके समझ में आ गया होगा कि आलस्य वृद्धि का मूल कारण भैंस का दूध, दही और घी ही है। और गोमाताजी द्वारा प्राप्त गव्य पदार्थ आलस्यनाशक हैं। अब से आप अपने बच्चों को गोमाताजी का दूध, दही, घी ही पिलाओ खिलाओ साथ ही आप भी गोमाताजी का दूध, दही, घी का उपयोग करो।

फिर दूसरी बात बच्चे की अच्छी शिक्षा.दिक्षा के लिए अच्छी पढ़ाई के लिए बच्चे की बुद्धि तेज होना अतिआवश्यक है। एक कहावत प्रचलित है जिसे हम सब जानते हैं कि ‘‘अक्ल बड़ी या भैंस’’ यानि भैंस में बिल्कुल अक्ल नहीं होती है। उदाहरण के रूप में . कोई भैंस पालक किसी दिन व्यस्त हो उसके पास समय नहीं हो और वह भैंस को अकेली जंगल में चरने के लिए इस भरोसे छोड़ देवे कि शाम को वापस घर लौट आएगी तो ऐसा कभी नहीं होगा कि भैंस अकेली घर आ जाए। वह जिस तरफ मुंह उठाएगी उसी तरफ आगे.आगे चलती जाएगी। उसे तलाश करके खोज कर लानी पड़ेगी। गोमाताजी को तो कई लोग सुबह दूध दुह कर अकेली चरने के लिए छोड़ देते हैं। गोमाताजी दिनभर इधर उधर घास.फूस खाकर शाम को एक निश्चित समय पर वापस घर लौट आते हंै। गोमाताजी की स्मरण शक्ति तेज होने के कारण वह कभी भी रास्ता नहीं भूलते हंै।
आप अपने घर के बाहर एक रोटी लेकर खड़े हो जाओए कोई भी गोमाताजी जब आपके घर के बाहर से गुजरे तो आप गोमाताजी को प्रेम से आवाज लगाकर वो रोटी आदर पूर्वक उन्हें जिमाकरए थोड़ा सा प्यार से सहला दो। आप समय देख लेना गोमाताजी दूसरे दिन चैबीस घण्टे के पश्चात लगभग उसी समय वापस आपके दरवाजे पर पधार जाएंगीं। उनको याद रहता है कि इस भक्त ने कल मुझे भोजन जिमाया था और प्रेम किया था। दूसरी और भैंस को भले ही आप कितना ही अच्छा खिला दोए रोटी तो क्या टोकरी भर कर लड्डू भी खिला दो तो भी वह दोबारा लौट कर नहीं आने वाली है। बेचारी की बुद्धि कम होती है। उसे ज्यादा कुछ याद ही नहीं रहता है कि मुझे कब किसने खिलाया पिलाया।
एक तरीका और है जांच करने का. आपके आस.पास कहीं दस बारह भैंसे हों सायंकाल दूध निकालने के समय वहां जाकर देखना जैसे ही भैंस पालक भैंस का दूध निकालने के लिए उसके बच्चे ;पाड़ेद्ध को छोड़ेगा तो वह भैंस का बच्चा सीधा अपनी माँ के पास ना जाकर कम से कम 3-4 भैंसो की लाते खाता है फिर अपनी माँ के पास पहुँच पाता है। वह तुरन्त अपनी माँ को पहचान नहीं पाता। जिसका दूध सुबह पिया शाम तक वह अपनी माता को ही नहीं पहचान पाया। दस घण्टे में ही अपनी दूध पिलाने वाली माता को भूल जाए। जब वही दूध आपका बच्चा पिएगा तो सुबह का पढ़ा हुआ शाम तक कैसे याद रख पाएगाघ्
भैंस के दूध का रंग होता है सफेद और गोमाताजी के दूध का रंग हल्का पीला । गोमाताजी को हल्दी तो नहीं खिलाई जाती है फिर भी गोमाताजी का दूध पीला कैसे रहता है। इसका कारण है गोमाताजी के दूध में तरल स्वर्ण क्षार रहता है जो बुद्धि बढ़ाने के साथ.साथ रोगों को भी मिटाता है। गोमाताजी की पीठ पर जो कुकुद होती है उसमें सूर्यकेतु नाड़ी होती है। जिसका सम्बन्ध दुग्ध शिराओं से होता है वही सूर्यकेतु नाड़ी सूर्य भगवान के प्रकाश से स्वर्णक्षार खींच कर दुग्ध तक पहुँचाती है जिससे उसकेे दूध का रंग पीला होता है।
तो बस अब तय करो कि आपका बच्चा दूध पिएगा तो गोमाताजी का ही पिएगा। घर में गोमाताजी है तो ठीक नहीं तो लाओ और गोमाताजी की व्यवस्था नहीं है तथा दूध आप बाजार से लाते हो तो फिर देशी गोमाताजी का ही दूध लाओ। चाहे गोमाताजी के दूध की कीमत साधारण भैंसए जर्सी के दूध से दुगुनी क्यों नहीं देनी पड़े।
अब स्मृति और बुद्धि वृद्धि के उपाय की विधि समझ लो। बच्चों को सूर्योदय से पूर्व उठना सिखाओ। स्नान के पश्चात सूर्य देवता को जल चढ़वाओ। गोमाताजी को प्रणाम कराओ फिर गोमाताजी की परिक्रमा कराओ। परिक्रमा के समय निम्न मान्त्रिक चैपाई बोले.

‘‘गुरु गृह गयउ पढ़न रघुराई, अल्प काल विद्या सब आई’’

इसके पश्चात सिर पर गोमाताजी की पूँछ घुमाओ। सुबह नास्ते में पहले खाली पेट 10 मिली गौमूत्र पिलाओ, बच्चे से गोमाताजी को सहलवाओ और रात्रि को सोते समय बालक को गोमाताजी का दूध पिलाओ।
यहाँ ध्यान दें कि बच्चों को दूध देसी गोमाताजी का ही पिलाना है तथा श्रावण मास में दूध नहीं पिलाना है। इन नियमों का पालन करवा कर देखोए क्या गजब का प्रभाव आपके बच्चे पर नजर आएगा। बालक की स्मरण शक्ति और स्फूर्ति कई गुना बढ़ जाएगी।
एक उदाहरण से हम गोमाता के महत्व को आसानी से समझ सकते है । गोमाता का बच्चा जब छोटा होता है तो उसे बछड़ा कहते है। थोड़ा बड़ा होने पर वह केड़ाए लवारियाए टोगड़ा या रेगड़ा कहलाता है। थोड़ा और बड़ा होने पर उसे नाराए नारकिया या नाड़िया कहा जाता है। तथा पूरी तरह से वयस्क होने पर उसे बैल या सांड कहते है। यानि की आयु के साथ नाम में भी उन्नति सूचक परिवर्तन होता हैं। दूसरी और भैंस का बच्चा जब छोटा होता है तो अधिकांश स्थानों पर उसे कहते है पाड़ा । थोड़ा बड़ा होने पर भी उसे पाड़ा ही कहते है। किशोर अवस्था में भी वह पाड़ा ही कहलाता है। पूर्ण वयस्क अवस्था में भी वह पाड़ा का पाड़ा ही कहलाता है यानि उसकी बिल्कुल भी उन्नति नहीं होती है।
ये नाम आपने और मैनें तो नहीं रखें है ना। सैंकड़ों वर्ष पूर्व हमारे बुजुर्गो ने रखे थे । इस बात से स्पष्ट होता है कि अगर आप अपने बच्चे को भैंस का दूध पिलाओगे तो वह पाड़ा.पाड़ा.पाड़ा ही रह जाएगा।
शिक्षा पद्धति में भी ध्यान रखे कि छोटे बच्चों को ‘‘ग’’ से गधा नही ‘‘ग’’ से गाय माता पढ़ावें। रामचरित मानस के अशोक वाटिका प्रसंग में इस बात को माता सीता द्वारा प्रमाणित किया है कि जो इन्सान जिसका जितना ज्यादा नाम लेता है, वैसा ही उसके जीवन पर प्रभाव पड़ता है। तो आपको बच्चों को गधा नहीं बनाना है। उनमें तो 33 कोटि देवताओं की दिव्यता लानी है। इसके लिए गोमाताजी की सेवा, गोमाताजी के नित्य दर्शन, गोमाताजी की नित्य परिक्रमा, नित्य पंचगव्य का पान तथा गव्य पदार्थों का उपयोग करें।

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