गोमाताजी के ईश्वरीय स्वरूप को जानने के कुछ महत्वपूर्ण प्रमाण

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हमें कुछ ऐसी बातों पर विचार करना चाहिए जो हमारे ह्रदय चक्षु को खोलकर गोमाताजी के ईश्वरीय स्वरूप के दर्शन कराएगी। जरा सोचे….. ईश्वर-भगवान-परमात्मा-देवता सर्व समर्थ है ईश्वर की इच्छा के बिना तो किसी पेड़ का पत्ता भी टूट कर पृथ्वी पर नही गिरता है, फिर भी ऐसे सर्व समर्थ परमात्मा के मल-मूत्र की महिमा किसी भी शास्त्र अथवा धर्म ग्रन्थों में नहीं लिखी है। जबकि गोमाताजी के गोबर और गोमूत्र की महिमा से तो अनेकों शास्त्र भरे पड़े है। शास्त्रों ने गोमाताजी के गोबर में लक्ष्मी और गोमूत्र में पाप नाशिनी गंगाजी का निवास बताया है। अब आप स्वयं विचार कीजिए कि जिनके गोबर और गोमूत्र की महिमा वेद, पुराण एवं अन्य शास्त्र गावें तो वो गोमाताजी भला पशु कैसे कहलावें। वो तो स्वयं भगवान है।
भगवान श्री कृष्ण जी की आनन्दमयी लीला को तो सारा सनातन समाज मानता है और मन में तो दानव समाज भी प्रभु गोपाल कृष्ण जी की महिमा को जानता हैं। भगवान श्री कृष्ण जी ने ब्रजधाम की पुण्य धरा पर 12 वर्ष की आयु तक गोमाताजी को चराया पर गौचारण के दौरान प्रभु ने अपने पैरों में पादत्राण (पाहुनियां-जूतियां) नहीं पहनी। गोपाष्टमी को जब प्रथम बार भगवान श्री कृष्ण जी गोमाताजी को चराने पधारे तो माता यशोदा जी लकुटी, कम्बल और पाहुनी (जूतियां) लेकर आई । भगवान ने यशोदा मैया से लकुटी (दण्ड) ले ली, काली कम्बलिया कन्धें पर रख ली पर पैरों में जूतियां पहनने से मना कर दिया। श्री कृष्ण ने मैया से कहा कि मैं यह नही पहनूंगा। मैया गो चारण तो ईष्ट सेवा हैं और गौमाता हमारी ईष्ट है भला में अपने ईष्ट के सामने जूतियां कैसे पहनूं। जरा सोचो यदि भगवान श्री कृष्ण को हम अपना ईष्ट मानते है तब गोमाताजी तो हमारी अति ईष्ट हुई ना। वो पशु कैसे हो सकती है। सारा जगत श्री कृष्ण को पूजता हैं और श्री कृष्ण गोमाताजी को पूजते हैं।  
नवरात्रि के पावन पर्व में देवी माता, भैरवजी और हनुमान जी के मन्दिरों में विशेष पूजा-पाठ, अर्चना प्रतिदिन होती है। पूजा आरती से पूर्व वहाँ के सेवक, पुजारी एक पात्र में गोमूत्र लेकर नीम की डाली या नागर बेल के पत्ते द्वारा पूरे मन्दिर में छिड़काव करते है, छीेंटे मारते है। अब आप विचार करो कि पृथ्वी पर कई बड़े-बड़े संत महात्मा हुए, भगवान का अवतरण हुआ,लेकिन कहीं पर भी इनके मल मूत्र की पूजा का विधान नहीं लिखा हैं। लेकिन गोमाताजी के गोबर और गोमूत्र की पवित्रता का वर्णन शास्त्रों में हैं। गोमाताजी का मूत्र तो इतना पवित्र हैं कि जिससे भगवान के, देवी माता के मन्दिर मूर्तियां तक पवित्र हो जाती है। जिनके मूत्र से मन्दिर और मूर्तियां, देव प्रतिमाएं तक पवित्र हो जाएं ऐसी गौमूत्र की दाता भगवती गोमाता भला पशु कैसे हो सकती है?

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