पहली रोटी नही, पहले रोटी गोमाताजी को जिमानी चाहिए।

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पाप के अन्न को पवित्र करने का एक ओर साधन था गौमाता जी को प्रेम और श्रद्धा से पहले रोटी जिमाना और बाद में परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा खाना। ये परम्परा हमारे पाप युक्त अन्न को पाप मुक्त करने का सहज साधन थी। आप सोचोगे कि गोमाताजी को पहले रोटी जिमाने से पाप का अन्न कैसे पवित्र हो जाएगा तो समझिए- आप बाजार से एक किलो गुड़ खरीद कर लाओ फिर परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर उस गुड़ को खाओ तो क्या कहा जाएगा कि आपने क्या खाया ?.. गुड़ खाया। और उसी गुड़ को थाली में रखकर मन्दिर ले जाओ। उस गुड़ में से थोड़ा सा भगवान को प्रेम से भोग लगाओ फिर शेष गुड़ लाकर घर बैठकर बड़े आराम से खाओ तो अब वह गुड़ क्या कहलाएगा ? … प्रसाद और प्रसाद में तो कभी पाप रहता ही नहीं हैं। आप ही सोचिए…गौमाताजी स्वयं सिद्ध भगवान है जिनके रोम-रोम में बसे हुए राम हैं, जिनके तन में 33 कोटी देवताओं का निवास है और चरणों में 68 करोड़ तीर्थो का आवास है। जिनके सींगो पर सारी सृष्टि का भार हंै। जिनके गोबर में भगवती लक्ष्मी जी का आधार है। जिनके पवित्र मूत्र में भागीरथी गंगा मैया की धार है। जिनके स्तनों में सप्त समुद्र का सार है। ऐसी भगवती भवानी सर्वदेवमयी, सर्वतीर्थमयी, सर्वसुखप्रदायनी गोमाताजी को आप अपने घर में बनी हुई रोटियों में से सुन्दर, श्रेष्ठ, उत्तम रोटी आदर के साथ पात्र में रखकर जिमाओ तो बची हुई रोटियां प्रसाद हो जायेगी कि नहीं ? हो जायेगी ना, बिल्कुल पवित्र प्रसाद हो जायेगी। और उन रोटियों को खाने से पुण्य बढ़ेगा और पुण्य वृद्धि से प्रेम बढ़ेगा। प्रेम वृद्धि से आनन्द बढ़ेगा और वो आनन्द चेहरे से झलकेगा।
वर्तमान समय में यह परम्परा लुप्त सी हो गई है। कोई-कोई लोग दया भाव से रोटी गौमाता को देते हैं। जबकि गौमाता दया का नहीं श्रद्धा का विषय है। ज्यादातर लोग तवे (केलड़ी, पोवणी) में सेकी पहली रोटी को उठाकर प्लेट में एक तरफ रख देते है। बच्चों को खिलाकर विद्यालय भेज देते है, पति को खिलाकर व्यापार, खेती, नौकरी पर रवाना कर देते है, स्वयं ने भी खा पी लिया और जब समय मिला तब गौमाता जी को खिलाया। और अगर भूल गये और रोटी रखी रह गयी तो सूखी रोटी को दूसरे दिन गौमाता जी को खिला देते हैं। अब आप ही बताएं ये कौनसी भोग विधि हुई जो हमारी शेष रोटियां प्रसाद बने । आप गुड़ लाओ पहले घर में बैठकर खुद खालो, परिवार के सभी सदस्यों को खिला दो फिर बचा हुआ शेष गुड़ मन्दिर में ले जाकर चढ़ा दो तो वो प्रसाद की श्रेणी में नहीं आ सकता है। तो होना यह चाहिए कि आपके परिवार का कोई भी सदस्य रोटी खाए उससे पहले-पहले गोमाताजी को रोटी जिमाएं, तब ही शेष रोटियां प्रसाद होगी वरना नहीं।
अब इसमें एक बात का ख्याल और रखना होगा। अधिकांश माताएं पहली रोटी (शुरूआत में बनी हुई रोटी) गोमाताजी को जिमाती है, जबकि पहली रोटी तो गौमाताजी को खिलानी ही नहीं है। आपको यह बात थोड़ी अटपटी सी लगेगी। ज्यादातर प्रचारित यही हो गया है कि पहली रोटी गाय माता को खिलाएं। यह गलत प्रचारित हो गया। पहली रोटी नही, पहले रोटी गोमाताजी को जिमानी चाहिए। रामायण जी, भागवत जी, महाभारत जी में कहीं यह नहीं लिखा है कि पहली रोटी गोमाताजी को दो। सिद्ध महापुरूषों का तो यही कहना है कि पहले रोटी गोमाताजी को जिमाओ। वैसे भी आप में जो भाई बहन स्वयं रोटी बनाते है वो इस बात को अच्छी तरह से जानते है कि पहली रोटी सामान्यतया ज्यादा अच्छी नहीं बन पाती है क्योंकि पहले-पहल तवा बराबर गर्म नही हो पाता । उसका तापमान कभी कम तो कभी ज्यादा रहता है। इसलिए पहली रोटी अक्सर कड़क हो जाती है तो कभी कच्ची रह जाती है या जल जाती है। कभी-कभी अच्छी फूलती भी नहीं है। इस कारण पहली रोटी सुन्दर भी नहीं दिखती है। ऐसी रोटी घर वाले कौन खाएंगें इसलिए रख दो एक तरफ गोमाताजी के लिए।
भाई यह तो निपटाने का साधन हो गया है श्रद्धा या पुण्य का नही। अगर आपकी नजरों में गोमाताजी माँ है, ईश्वर है, भगवान हैं तो फिर पहली रोटी पर आपका हाथ जाना ही नहीं चाहिए।
तीन रोटी सिकने के बाद चैथी या पाँचवी रोटी जो भी अच्छी हो, सुन्दर हो, बढ़िया सेकी हुई हो उसे थाली में रखकर, वो भी हाथ से नहीं हाथ से तो लोग भिखारी की झोली में डालते है… गोमाताजी तो भगवान है…. थाली में रखकर, रोटी के ऊपर थोड़ा घी गुड़ लगाकर, रुखी रोटी कोरी रोटी नहीं (आपको भी तो रोटी के साथ सब्जी अचार, चटनी, घी, गुड़, दही, छाछ कुछ ना कुछ तो चाहिए ना) गोमाताजी को सब्जी, दही जो भी आप भोजन में लेते हैं एक थाली में रखकर श्रद्धा पूर्वक जिमाओ। इस प्रकार जिमाने से गोमाताजी को भोग लग गया और गोमाताजी के साथ 33 कोटी देवी देवताओं को भी भोग लग ही गया। अब बचा हुआ भोजन पवित्र प्रसाद है। उस भोजन को आप प्रेम पूर्वक खाओ, वह पवित्र प्रसाद स्वरूप अन्न आपके जीवन में पापों को समाप्त करके पुण्य ही पुण्य भर देगा। और ज्यों-ज्यों पुण्य बढ़ेगा, त्यों-त्यों प्रेम, दया, शर्म और आनन्द तो अपने आप बढ़ेगा। आनन्द पूर्ण जीवन यापन करना ही सार्थक जीवन कहलाएगा। बस आज से ही आपको पहले रोटी श्रद्धा से गोमाताजी को जिमाना शुरू कर देना है।

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