अधिक डीजल का उपयोग भारत को गो हत्यारा बना रहा है।

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हम यदि आज से तीस-चालीस पहले की बात करें उस समय हर किसान के पास बैल भगवान हुआ करते थे। सारी खेती बैल भगवान से ही हुआ करती थी। बैल भगवान का पैर लगने के कारण अन्न का पाप स्वतः समाप्त हो जाता था। पवित्र अनाज खाने को मिलता था तो जीवन में पुण्य रहता था और पुण्य के प्रभाव से ही जीवन में प्रसन्नता बनी रहती थी और पुण्यमयी प्रसन्नता चेहरे पर झलकती थी। आप जरा सोचिए- पहले मकान कच्चे होते थे। कार, गाड़ियाँ नहीं थी, दो जोड़ी कपड़े होते थे, उन्ही को धोते, सुखाते, पहनते थे फिर भी चेहरे पर अपार प्रसन्नता रहती थी। आज अधिकांष लोगों के मकान पक्के है। कार, गाड़ियाँ सबके पास है, कपड़े भी खूब अच्छे-अच्छे पहनते है, खाना भी अच्छा-अच्छा खाते है लेकिन चेहरे किसी के भी प्रसन्न नजर नहीं आते है। कारण? बैल भगवान से नाता तोड़ना। आप (आज के किसान) ने क्या सोचा, बैल से खेती करना मंहगा है इसलिए यान्त्रिक खेती (ट्रेक्टर से) करने लगे कि खेती सस्ती होगी। लेकिन यह सच नहीं है। बैल भगवान जितने रूपये की घास खाते है उतने रुपये का गोबर खाद के रुप में दे देते है। जो खेतों की शक्ति को बढ़ाता है। खेत की जल धारण क्षमता को बढ़ाता हैं। और ट्रेक्टर में तो जितना तेल डालो उतना धुँआ देता है, और कुछ भी नही देता है। प्रदूषण फैलाता है, रोग बढ़ाता है, राष्ट्र की नींव को भी आर्थिक दृष्टि से कमजोर करता है। क्योंकि डीजल खरीदने के लिए अपना धन विदेशों में जाता है। और कड़वी सच्चाई तो यह है कि डीजल के बदले में विदेशों को भारत से गोमाताजी की निर्ममता से हत्या करके मांस भेजा जाता है। यानि अधिक डीजल का उपयोग भारत को गौ-हत्यारा बना रहा है। बैल भगवान जो घास खाते है वो तो आपके अनाज के बाद फसल का बचा हुआ हिस्सा है। खरीद के तो लाना नहीं है। और बदले में गोबर मिल रहा है। यह गोबर एक पवित्र प्राकृतिक खाद है जो धरती माता की शक्ति को बढ़ाता है। आजकल ज्यादातर लोग खेतों में रासायनिक उर्वरक (खाद) जैसे- यूरिया (नाइट्रोजन), डी.ए.पी. (डाई अमोनियम फास्फेट) आदि का उपयोग करने लगे है। जो फसल को कम समय में बडा कर देता है और अधिक अन्न (धान) उत्पन्न हो जाता है लेकिन उस अन्न में प्राकृतिक स्वाद नहीं रहता । इन रासायनिक उर्वरकों से जमीन (खेतों) को भंयकर नुकसान हो रहा है। खेती बंजर (बांझ), ऊसर और जहरीली हो जाती है। मिट्टी की रासायनिक और भौतिक संरचना खराब हो जाती है। भूमि कड़क हो जाती है। जल धारण क्षमता समाप्त हो जाती है। और लम्बे समय तक गौमाताजी का गोबर, गौमूत्र डाले बिना इन रासायनिक उर्वरकों का उपयोग करें तो खेतों में अनाज उगना ही बन्द हो जाता है।
कुछ लोगों का सोचना यह भी रहता है कि भैंस तथा ऊंट का मल भी उपयोगी है। कुछ हद तक यह ठीक हो सकता है लेकिन भैंस तथा ऊंट के मल से 100 गुणा ज्यादा शक्ति गौवंश के गोबर में होती है। बैल भगवान का खेती में मंहगा साबित करना हास्यास्पद सा लगता है। बैल भगवान से हुई खेती ज्यादा लाभदायक है। अगर आप बड़े जमींदार हो तथा बहुत ज्यादा खेती है तो आप सारा काम ट्रेक्टर से करो लेकिन बीज बुवाई, (बिजाई) का काम तो बैल भगवान से ही होना चाहिए।
अगर आप स्वयं खेती नहीं करते हो, अनाज मण्डी से खरीद कर लाते हो तो उस किसान से ही अनाज खरीदें जो खेती में बैल भगवान का सहारा लेता हो। चाहे उस अन्न की दुगुनी कीमत क्यों नहीं देनी पड़े। बैल भगवान से हो रही खेती का अन्न लाकर खाओगे तो अपार प्रसन्नता की अनुभूति करोगे।

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